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दूध बनाने की अवधि

UK Atheya / Cattle, Cattle Milk Production /

थन की बाहरी बनावट

थन की संरचना

गाय का थन उसके बच्चे को दूध पिलाने एवं दूध बनाने के लिए बना है। यह अंग शरीर के बकिलो0र लटका रहता है। थन के चार भाग होते है प्रत्येक भाग अपने में दूध बनाने में सक्षम होता है। पीछे के 2 थनों में आगे के 2 थनों की तुलना में दूध अधिक बनता है। यह पेट की दीवार से चिपका रहता है। यह एक बकिलो0र के लेगामेंट से जूडा रहता है थन के मध्य में एक और लेगामेंट होता है जैसा कि चित्र में दिखाया गया है। दूध विशेष प्रकार की सेल में बनता है। जो कि एक समूह के रुप में एल्वियोलाई बनाती है। इस एल्वियोलाई से एक नलिका द्वारा दूध शरीर के बकिलो0र निकलता है।


जब थन से 500 मि.ली. खून प्रवकिलो0 होता है तब एक मि.ली. लीटर दूध बनता है।

दूध बनने में तीन प्रक्रियायें कार्य करती है।

1.  पहली क्रिया में पौष्टिक तत्व खून से निकलकर एल्वियोलाई मेें आतें है।
2.  दूसरी प्रक्रिया में ये दूध में परिवर्तित होतें है।
3.  तिसरी प्रक्रिया में दूध बकिलो0र निकलता है।

एल्वियोलाई, दूध बनने की इकाई होती है एवं 10 से 100 एल्वियोलाई एक स्थान पर इक्ट्ठी होती है ये मिलकर लोब्यूल बनाते है। लोब्यूल लोब बनाते है। संपूर्ण दूध एक नलिका द्वारा बकिलो0र निकलता है। थन में कई बिलियन ;10 ग 109द्ध सैल होते है। प्रत्येक एल्वियोलाई संकुचित करने वाली बसकेट सेल से ढकी रहती है जो कि गाय के पवासने के समय आॅक्सीटोसिन के प्रभाव में सिकुडती है जिससे दूध बकिलो0र निकलता है जो कि थन की नलिका में बकिलो0र आ जाता है और वहां से थन के छेद द्वारा बकिलो0र निकलता है।

दूध का बनना

दूध के बनने की रासायनिक क्रिया

दूध हर समय बनता रहता है। यदि गाय का दूध समय पर नही निकाला जाता है तो दूध बनना बन्द हो जाता है। अधिक दूध देने वाले पशु का दिन में 3 बार 8 घंटे के अंतर से दूध निकालना पडता है।

गाय के भोजन का दूध उत्पादन पर प्रभाव

  •  गाय के भोजन में जितनी ऊर्जा होती है उतना ही प्रोप्योनिक एसिड बनता है।
  •  यह प्रोप्योनिक एसिड जिगर में जाकर ग्लूकोज में बदलता है।
  •  ग्लूकोज फिर ग्लैक्टोज से मिलकर लैक्टोज में बदलता है।
  •  लैक्टोज के बनने पर यह सुनिश्चित होता है कि गाय कितना दूध देगी।

दूध में केसिन का बनना

  • केसिन का बनना गाय की जीन से संबन्ध रखता है।

चिकनाई का बनना

फैट एसिटिक ब्यूटाइरिक एसिड से बनते है और यह गाय के चारे पर निर्भर करता है। जो गाय जितना अधिक भूसा खाती है उतना अधिक पफैट बनाती है।

आॅक्सीटोसिन परिचय

आॅक्सीटोसिन इंजेक्षन पशु चिकित्सा में गाय, घोड़ा, भेड़ एवं शूअर में उपयोग होता है। इसका उपयोग बच्चेदानी का मुंह खुलने पर बच्चे को बकिलो0र निकालने के लिए गर्भागशय के संकुचन के लिए किया जाता है। और यह दूध के उतारने में भी सहायता करता है। यह इंजेक्षन अधिकृत चिकित्सक के द्वारा ही प्रयोग करना चाहिए।

खुराख

आॅक्सीटोसिन के प्रत्येक एमएल इंजेक्षन में यूएसपी ;न्ैच्द्ध के अनुसार 20 यूनिट पोस्टीरियर प्यूटीट्री हारमोन की मात्रा होती है इसकों 150 से 300 सेंटीग्रेट में रखना चाहिए।

आॅक्सीटीसिन का उपयोग

  • इसका उपयोग बच्चे को गर्भाशय में से बकिलो0र निकालने के लिए बच्चेदानी के संकुचन के लिए होता है जबकि बच्चेदानी का मुंह खुला हो।
  • इसका प्रयोग बच्चेदानी की सफाई करते समय बच्चेदानी में एकत्रित मवाद व जेर को बकिलो0र निकालने में भी होता है।
  • इसका प्रयोग सर्जरी द्वारा पेट काटकर बच्चे को बकिलो0र निकालने के बाद गर्भाशय के संकुचन के लिए भी किया जाता है।

यह दूध उतारने में भी सहायक है।

यह मैस्ट्राइटिस या थनेला के उपचार में भी दवाई डालने से पहले लगाया जाता है। बच्चा पैदा करने वाली खुराख, दूध उतारने वाली खुराख से 5 गुणा कम होती है। यदि आप बच्चा पैदा करने वाली खुराख को दूध उतारने वाली खुराख में देंगें तो इसका प्रयोग पशु पर प्रजनन में बाधा कर सकता है।

दूध में बीटा केसीन (ए1 एवं ए2)

बीटा केसीन दूध में पायी जाने वाली कैल्शियम युक्त प्रोटीन है जो कि हड्डियों को मजबूत करने, प्रतिरक्षण प्रणाली को ठीक करने एवं जीवन क्रियाओं में सहायक होती है। प्रारम्भ से ही गाय की बीटा केसीन ए2 प्रकार की है, परन्तु अब ए1 प्रकार की बीटा केसीन यूरोपियन नस्ल की गायों में पायी जाने लगी है।

इसके विपरीत बकरी, भेड़, भैंस, ऊंट तथा मनुष्य के दूध में बीटा केसीन केवल ए2 प्रकार की होती है। पाचन क्रिया में ए1 बीटा केसीन से एक और प्रोटीन की उत्पत्ति होती है जिससे बीटा कैसोमौपिर्फन 7 होता है। यह एक प्रकार ओपाॅअड है, यह अपने बनने के लेवल के अनुसार अपने प्रभाव को दिखाता है। इसके प्रभाव में टाइप 1 डाइबीटीज, हृदय से संबंधित बीमारियां, मस्तिष्क से संबंधित बीमारियां, व्यवहार में परिवर्तन, बच्चों का विकास, बच्चों में आकस्मिक मृत्यु तथा दूध से एलर्जी संबंधित बीमारियां हैं। इन सब बातों की सत्यता गुणात्मक रूप से तथा पशुओं में प्रयोग करके सिध ( हो चुकी हैं। चूहों में प्रयोग करके यह देखा गया है कि ए1 बीटा केसीन आंतों में खाने के पाचन को बाधित करती है। जिससे एक एन्जाइम डी.पी.पी. 4 अधिक मात्रा में निकलता है। जो बड़ी आंत को बाधित करता है। ये सारी बातें जो वीटा ए1 केसीन में होती हैं परन्तु ए2 बीटा केसीन में नहीं होती हैं।


इन सब बातों से बीटा ए1 केसीन पर अनुसंधान करने की बात को बल मिलता है, इसलिए केवल उन्हीं गायों का प्रजनन कराना चाहिए जो कि ए2 बीटा केसीन दूध में पैदा करती हैं, इसको बदलने में 4 से 12 साल तक का समय लग सकता है परन्तु प्रजनन की नई तकनीक के द्वारा कम समय में भी इस समस्या का समाधान किया जा सकता है। भारतवर्ष में हम लोग ज्यादातर भैंस का दूध पीते हैं तथा देशी गाय का दूध पीते हैं। इसलिए इस दूध में बीटा केसीन ए1 की कोई सम्भावना नहीं है। यूरोप की सभी नस्लों में ए1 बीटा केसीन नहीं पाया जाता है। हाॅलस्टीन में सबसे ज्यादा तथा जर्सी में कम है। जिसमें 25-50 प्रतिशत देशी गायों का समावेश है। परन्तु हमें ए1 और ए2 का पता लगाकर ऐसे ही पशुओं का प्रजनन करना चाहिए। जिसमें ए2 बीटा केसीन हैं हमारी कुल गायों में 20 प्रतिशत संकर गायें हैं। केसीन घी बनाने में निकल जाती है।

इसलिए घी बनाने में केसीन के प्रभाव की समस्या कम रहती है। हालिस्टीन में 90 प्रतिशत जर्सी 60 प्रतिशत ए1 कैसीन होती है।

गुनशायर गाय के दूध में 100 प्रतिशत ए2 केसिन होता है। गुनशायर जर्सी की तरह यूरोपियन गाय है।

भारत में दुग्ध उत्पादन की मात्रा

 

गाय के दुग्ध उत्पादन पर तापक्रम का असर

विदशी गाये 25.5 डिग्री के ऊपर तापक्रम पर तनाव में आ जाती है तथा उसका असर उसका भोजन ग्रहण एवम जुगाली पर पडता है। तथा गाय सुस्त हो जाती है वह पानी अधिक पीती है तथा खाडी रहती है तथा यह चित्र में ऊपर दर्शाया गया हैं

दूध देने की अवधि

दुग्ध उत्पादन, चारा खाना, वजन में कमी एवं पेट में बच्चे के वजन का ग्राफ

बियाने के बाद गाय के दूध देने की अवस्था को तीन भागो मंें विभाजित किया जा सकता है। पहली अवस्था 14 दिनो से 100 दिन, दूसरी अवस्था 100 दिन से 200 दिन तथा तीसरी अवस्था 200 दिन से 305 दिन। यानी गाय बियाने के 45 से 50 हफते तक ही दूध देती है। गाय का दूध पहलेे 100 दिन में बढता चला जाता है। फिर अगले 200 दिन तक धीरे-धीरे घटता जाता है इसी तरह गाय का वजन भी 100 दिन तक घटता है, फिर धीरे-धीरे बढना शुरू हो जाता है। दरअसल गाय पहले कम चारा खाती है फिर धीरे-धीरे उसका चारा बढ़ जाता है। अगले 200 दिन यह फिर बढता है इस दौरान गाय मोटी हो जाती है। यह मोटापा उसके गाभिन होने की वजह से भी दिखायी देता है। गाय का दुग्ध उत्पादन, वजन तथा चारा खाने का गाय के दूध देने की मात्रा पेट मे बच्चे के बजन का ग्राफ नीचे ग्राफ मे दर्शायी गयी है।

दूध सुखाने के विधि

  1. हरा चारा दाना आदि गाय कोे देना धीरे-धीरे बन्द कर दे ।
  2. गाय का दूध दो समय न निकाले और पूरा दूध भी न निकाले। कुछ समय तक एक ही बार दूध निकाले।
  3. जब गाय दूध देना बंद कर दे, तब उसके चारा थनों में एक-एक ट्यूब चढा दे। ऐसा एक महीने बाद फिर करें।
  4. दूध 60 दिन रोकने से गाय की प्रतिरोधक क्षमता बढती है, उसके पैर मजबूत होते है उसका पाचान तन्त्र मजबूत होता है तथा थन की दूध बढाने वाली सेल पूनजीवित होती है।

मिल्की मशीन

आजकल डेयरी उद्योग में मिल्किंग मशीन का होना अति आवश्यक है। एक ग्वाला 10 पशुओं का दूध निकालने में काफी समय लगाएगा । इसलिए यह आवश्यक है कि डेयरी खोलने से पूर्व आप जनरेटर एवं मिल्किंग मशीन की व्यवस्था कर लें। एक मिल्किंग मशीन में एक से लेकर 8 बाल्टियां लग सकती है जो कि 8 पशुओं का दूध 5 मिनट में निकाल देती है लेकिन अधिकत्तर डेयरियों में एक समय में 2 ही बाल्टियों का प्रयोग होता है

 

Sudhanshu Mishra June 22, 2020

सर गाय बियाने के कितने दिन तक उसके दूध की खुजड़ी बनती है।
मेरे गाय को बच्चा दिए हुए १० दिन हो गए लेकिन अभी तक दूध उबालने के बाद उसके दूध का खुजड़ी बन जा रहा है।