होल्सटीन फ़्रिजन गाय का इतिहास

इतिहास

यह गाय 2000 वर्ष से नीदरलैण्ड़ से विकसित हुई है। यह गाय वीटाविनस गाय जो की काली होती है। तथा एफ.आर. आई.ई.एन.एस. जो कि सफेद रंग की होती है, से बनाई गई है। यह गाय नीदरलैण्ड से अमेरिका 1861 तक ले जाई गई।

1885 में एच.एफ. एसोएसन आॅफ अमेरिका बना। 1994 हाॅलिस्टीन एसोशियेशन यू.एस.ए. बना। 1940 के बाद अतिहिमकृत बीज का प्रचलन बढ़ा जिससे 28 प्रतिशत गाय इसी से उत्पादित होने लगी। एक सांड से 50,000 गाय गर्भित की जा सकी। अब इसका ऐसा वीर्य उपलब्ध है जिससे केवल बछिया पैदा होंगी तथा ए2 केसिन वाली हाॅलिस्टीन पैदा होंगी।

2010 में अवरग्रीन व्यू माई 1326 ई.टी. नाम की गाय ने 365 दिन में लगभग 36,000 लीटर उत्पादित किया। ऐसी गाय तीन से चार ब्यांत चलती है। किन्तु कनाड़ा की एक गाय ने 11 ब्यांत में 200 हजार लीटर दूध दिया। अर्थात प्रति ब्यांत 20 से 22 हजार लीटर दिया।

अमेरिका में 10 मिलियन पशु दूध देते है जिसमें 9 मिलियन हाॅलिस्टीन है। अमेरिका में 1500 गायों के काफी सारे फार्म है। लेकिन अधिकत्तर 30 गाय ही रखते है। भारतवर्ष में 3 या 4 चार गायों की डेरियां है। भारत में दूध उत्पादन उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, गुजरात, आंध्र प्रदेश में अधिक है। तथा भैंस के दूध का उत्पादन पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा में अधिक होता है।

भारत की देशी गाय 2 से 3 लीटर औसत दूध उत्पादन करती है। जिन क्षेत्रों में हरित क्रांति हुई हैं एवं जो क्षेत्र सिंचित हैं वहां पर हाॅलस्टीन तथा जर्सी गायों का औसत उत्पादन 10 लीटर तक पाया गया है। परन्तु कृषि के यांत्रिकरण की वजह से ग्रामीण क्षेत्रों में लोग भैंसो को रखना अधिक लाभकारी मानते हैं क्योंकि भैंस बुढ़ी होने पर भी अच्छी कीमत दे जाती है, जबकि गायों को गौशाला या सड़क पर छोडने के अलावा कोई उपयोग नहीं है।

हाॅलिस्टीन एसोशियन अमेरिका ने ऐसी हाॅलिस्टीन का चयन किया है। जो कि भारत, इजराइल तथा अरब की भीषण गर्मी में भी आसानी से रह कर औसतन 30 लीटर दूध प्रतिदिन देने में सामर्थवान है। पंजाब, उत्तराखण्ड, गुजरात, आंध्र प्रदेश, तथा बंग्लूर में इन गायों के उत्पादन से अपनी जमीन से कृषि से अधिक आय अर्जित कर रहें है।

यह गाय आसानी से प्रबन्धन योग्य है। तथा इन गायों में मिलिकिंग मशीन लगाने की भी कोई दिक्कत नहीं है। मिलिकिंग मशीन तथा अपने सीधेपन के कारण इन्हे नियंत्रित वातावरण में रखकर डेयरी उद्योग का उद्योगिकरण कर रहे है। यह गाय एक माह में 500 से 1000 लीटर दूध आसानी से दे देती है।

होल्सटीन गाय के लिए आवास

इन गायों को रखने के लिए विशेष आवास की व्यवस्था भी नहीं हैं यह 0 डिग्री सेंटीग्रेट से 25 डिग्री सेंटीग्रेट तक आसानी से रह लेती है। इनको केवल धूंप से बचाने के लिए छाया की आवश्यकता होती है। ऐसा नहीं कि इन गायों में कोई समस्या नहीं है।

यह गाय थनैला, खुरपक, मुँहपक, गर्भपात, अधिक गर्मी, अधिक आंर्द्रता तथा आंत्रिक तथा वाहय परजीवी एवं भयंकर खून के परजीवियों से, देशी गायों की तुलना में अधिक प्रभावित होती है इनको विशेष चिकित्सा टीकाकरण की उपलब्धता न होंने पर नहीं रखा जा सकता है। और इनके आहार का भी विशेष ध्यान रखना पडता है। परन्तु ये सब बातें इस पुस्तक में विस्तार से समझायी गई है।

अमेरिका में मशीन द्वारा 3 बार दूध निकालने से दूध में 17 प्रतिशत की बढोतरी हुई तथा अमेरिका में दाना चारा साथ दिया जाता है। रसया की कोशरोमा गाय भी 25 साल तक जीवित रहती है। अमेरिका में 10 मिलियन पशु दूध देते है जिसमें 9 मिलियन हाॅलिस्टीन है। अमेरिका में 1500 गायों के काफी सारे फार्म है। लेकिन अधिकत्तर 30 गाय ही रखते है। भारतवर्ष में 3 या 4 चार गायों की डेरियां है।

भारत में दूध उत्पादन उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, गुजरात, आंध्र प्रदेश में अधिक है। तथा भैंस के दूध का उत्पादन पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा में अधिक होता है।
जिन क्षेत्रों में हरित क्रांति हुई हैं एवं जो क्षेत्र  सिंचित हैं वहां पर हाॅलस्टीन तथा जर्सी गायों का औसत उत्पादन 10 लीटर तक पाया गया है। परन्तु कृषि के यांत्रिकरण की वजह से ग्रामीण क्षेत्रों में लोग भैंसो को रखना अधिक लाभकारी मानते हैं क्योंकि भैंस बूढ़ी होने पर भी अच्छी कीमत दे जाती है, जबकि गायों को गौशाला या सड़क पर छोडने के शिवाय कोई उपयोग नहीं है।

हाॅलिस्टील एसोशियन अमेरिका ने ऐसी हाॅलिस्टीन का चयन किया है। जो कि भारत, इजराइल तथा अरब की भीषण गर्मी में भी आसानी से रह कर औसतन 30 लीटर दूध प्रतिदिन देने में सामर्थवान है। पंजाब, उत्तराखण्ड, गुजरात, आंध्र प्रदेश, तथा बंग्लूर में इन गायों के उत्पादन से अपनी जमीन से कृषि से अधिक आय अर्जित कर रहें है। यह गाय आसानी से प्रबन्धन योग्य है। तथा इन गायों में मिलिकिंग मशीन लगाने की भी कोई दिक्कत नहीं है।

मिलिकिंग मशीन तथा अपने सीधेपन के कारण इन्हे नियंत्रित वातावरण में रखकर डेयरी उद्योग का उद्योगिकरण कर रहे है। यह गाय एक माह में 500 से 1000 लीटर दूध आसानी से दे देती है। इन गायों को रखने के लिए विशेष आवास की व्यवस्था भी नहीं हैं यह 0 डिग्री सेंटीग्रेट से 25 डिग्री सेंटीग्रेट तक आसानी से रह लेती है।

इनको केवल धूंप से बचाने के लिए छाया की आवश्यकता होती है। ऐसा नहीं कि इन गायों में कोई समस्या नहीं है। यह गाय थनैला, खुरपक, मुँहपक, गर्भपात, अधिक गर्मी, अधिक आंर्द्रता तथा आंत्रिक एवं वाहय परजीवी एवं भयंकर खून के परजीवियों से, देशी गायों की तुलना में अधिक प्रभावित होती है इनको विशेष चिकित्सा टीकाकरण की उपलब्धता न होंने पर नहीं रखा जा सकता है।

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