भैंस का इतिहास

भैंस महिस का अभ्रंस है। महिसासुर का वर्णन काफी आता हैं, कुछ लोग महिसासुर की पूजा भी करतें है। कहा यह भी जाता है। कि यमराज की सवारी भी भैंसा ही है। दक्षिणी भारत के आंध्र प्रदेश में महिसामती तथा महिसा मण्डल नाम के स्थान भी है। भैंस का दुग्ध उत्पादक पशु के रूप में 5000 वर्ष पूर्व सिंधु घाटी की सभ्यता में हुआ। विश्व में सबसे ज्यादा भैंस एसिया में पाली जाती है। भैंस रखने में भारत का प्रथम तथा किस्तान व चीन का भैंस का स्थान दूसरा है। दक्षिणी एशिया जैसे मलेशिया, इंडोनेशिया, सिंगापुर में स्वम्प कीचड में पलने वाली भैंस पाली जाती है। इनको उन स्थानों में धान का ट्रैक्टर भी कहते है। ये स्वम्प भैंस, खेती तथा मांस उत्पादन में प्रयोग की जाती हैं। इसका दुग्ध उत्पादन, सिंधु घाटी वाली नदि में पलने वाली भैंस से काफी कम है।

कुछ समय से पूर्वी यूरोप के देश जैसे रुमानिया, बुलगेरिया, तथा इटली में भैंस पालने का प्रचलन बढ रहा है। इसके साथ-साथ दक्षिणी अमेरिका तथा अमेरिका के दक्षिण भाग में इसके पालन को महत्त्वता दी जा रही है। इसका मुख्य कारण यह कि भैंस को खुरपक-मुंहपक तथा मेड काऊ रोग यदा-कदा होता है। इसके साथ-साथ इसका दूध ए2 केसिन वाला होता है। तथा यह पशु सूखे चारे पर आसानी से पाला जा सकता है।
उपरोक्त कथन से यह पता चलता है कि एक स्वंप बफैलों (कीचड़ में रहने वाली) होती है और रीवराइन (नदि में रहने वाली) होती है। स्वंप बफैलों के डीएनए 48 क्रोमोसोम और रीवराइन के डीएनए 50 क्रोमोसोम होते हैं। लेकिन इन दोनों के क्राॅस से उत्पन्न संतान से नर बधिया होते है। गाय और भैंस का क्राॅसिंग नही होती है। क्योकि गाय के डीएनए में 60 क्रोमोसोम होते है। परन्तु अमेरिका का बायसन जिसके 60 क्रोमोसोम होते है, वह गाय से क्राॅस करके जो संतान उत्पादित करता है, उसे कटैलो कहते है।
भारत विश्व का सबसे अधिक भैंस के मांस का निर्यात करता हैं। तथा यहां का सबसे ज्यादा मांस वेतनाम को जाता है।