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मिल्किंग मशीन का इतिहास

UK Atheya / Cattle, Cattle Milk Production /

दूध में फैट को चैक करने एवं क्रीम निकालने की मशीन का अविष्कार मिल्किंग मशीन से पहले हुआ था। 19वीं शताब्दीके आरम्भ तक यह सोचा जाता रहा कि मिल्किंग मशीन को लगाने से गायों को बहुत हानि होगी। 19वीं शताब्दी तक दूध निकालने के लिए लौहे या हड्डी की टयूब थन में लगाई जाती थी जिससे दूध टपकता रहता था।

इसका पहला विवरण 1850 में अमेरिका में किया गया है जिसमें रबर की ट्यूब को थन में लगाया जाता था परन्तु इससे थनों में रोग हो जाता था और कभी-कभी बार-बार रबर की ट्यूब लगाने से थन से दूध बार-बार गिरता रहता था। इस विधि में कोई अधिक प्रगति नहीं हुई। 1878 तक हाथ से ही दूध निकालना अच्छा माना जाता था। पहले की मिल्किंग मशीन 2 भागों में विभाजित की जा सकती है, एक में तोथन में से दूध निकालने के लिए बल का प्रयोग होता था और दूसरे भाग से वैक्यूम द्वारा दूध निकाला जाता था। ये दोंनो ही विधियां50 वषों तक बिना किसी प्रगति के चलती रही, उसके बाद वैक्यूम से चलने वाली मशीनों का जमाना आया। 1859 में अमेरिका में दूध केप्याले बने जो प्रत्येक थन पर लग जाते थे और सक्सन पम्प (वायु निकालने वाला पम्प) हाथ से चलाया जाता था इसके बाद क्योंकि इसमेंवैक्यूम या शून्य हर समय बना रहता था। जिससे कि थन में हानि हो जाती थी। पहली मिल्किंग मशीन 1860 में अमेरिका में विकसित हुई जिसमें लगातार शून्य या सक्सन को बनाया जाता था। इसके बाद 1889 में अमेरिका में एक प्रभावकारी मिल्किंग मशीन का अविष्कार हुआ जिसमें  सक्सन  को  लगातार  प्रयोग  नही  किया  जा  सकता  था  बल्कि इसको बीच-बीच में बन्द कर दिया जाता था। यह पल्सेटर मशीन कहलाती थी। जिसमें हाथ की बजाय भाप से वैक्यूम बनाया जाता था। पल्सेटर मशीन में रुक-रुक वैक्यूम कर बनाया जाता था। इस प्रकार ऐसी मिल्किंग मशीन की आवश्यकता थी जो कि हाथो के समान ऊपर से नीचे की ओर दबाव धीरे-धीरे बनाये।

यह मशीनें 1928 के बाद आयीं। इस मशीन में 4 प्याले होते है जो कि चारो थनों पर लग जाते हैं जिससे चारो थनों का दूध एक जगह एकत्रित हो जाता है। इस मशीन में वैक्यूम की ट्यूब लगी होती है जो कि कप में जाती है जिसमें रुक-रुक कर वैक्यूम्प पैदा होता है। इसमें एक दूध को खिंचने का वैक्यूम पम्प होता है और एक पल्सेटर होता जो कि वैक्यूम को रुक-रुक कर चलाता है। इस मशीन में कभी-कभी कीटाणु घुसकर मैस्ट्राइटिस कर देते है। अच्छी मशीनों में मैस्ट्राइटिस कम होता है इसलिए घटिया कम्पनी की मशीनों को नहीं खरीदना चाहिए। इसमें वैक्यूम पम्प तथा पल्सेटर का समन्वय अति आवश्यक है और थन में लगने वाले कप की रबर का भी विशेष महत्व होता है। प्रत्येक थन में जूडने वाले कप में एक वैक्यूम टयूब होती है जिसमें निश्चित समय अन्तराल पर वैकयूम्प रुक जाता है और मिल्क टयूब से दूध आता है। आद्युनिक मिलिकिंग मशीन दूध खत्म होने पर मशीन के कप निकल जाते है और मशीन कम्प्यूटर से जूडे होने के कारण आद्युनिक मशीनों में गाय में मैस्ट्राइटिस होने की सूचना भी मिलती है। ये मिल्किंग मशीन के भागों चित्रों द्वारा दिखाया गया है।