Go to the top

टीकाकरण का इतिहास

UK Atheya / General Knowledge, Immunisation /

इंग्लैण्ड के डॉक्टर जीनर ने सन् 1896 में यह देखा कि जब गायों में माता का रोग होता है तथा जो ग्वालिन उनके दूध निकालने से उनके हाथों में हल्के छाले हो जाते है। तथा इन ग्वालिनो को आदमी में होने वाला पोक्स का भयंकर रोग नही लगता है।

इस पर विचार करके जीनर ने उनके हाथ के छालों का पानी एक स्वस्थ्य बच्चें को लगा दिया उसके उपरान्त मनुष्य में होने वाली पोक्स से उसे संक्रमित किया गया जिससे उसे यह बात पता चली कि वह बच्चा मनुष्य को होने वाली पोक्स से बचाया जा सकता है। गाय का पोक्स का रोग मनुष्य में कोई भयंकर विकार पैदा नही करता है। लेकिन वह मनुष्य में होने वाले भयंकर पोक्स के रोग से बचाता है। इस प्रकार जीनर ने 18वीं शताब्दी के शुरु में पोक्स से बचने का उपाय निकाल लिया इस प्रकार इंग्लैंड में पोक्स की महामारी से बचने का साधन ढूंढ लिया और यह मानव जाति बहुत बडी उपलब्धी सिद्ध हुई। इस प्रकार से हम सब पोक्स के प्रकोप से बचे है।

पोक्स के टीके के 100 वर्ष बाद लुईस पाश्चर ने कुत्ते के काटने से होने वाले रोग रैबीज के रोग का उपचार निकाला। इसमें रैबीज के विषाणु को दुर्बल बनाया जाता है जिससे उसकी प्रतिरोधक क्षमता तो बनी रहती है लेकिन वे रोग उत्पन्न नही कर सकते है कुत्ते के टीकाकरण का विवरण नीचे दिया है। इस प्रकार से 19वीं सदी के प्रारम्भ से विभिन्न रोगो की रोकथाम के लिए विश्व भर में टीकाकरण की विधि अपनाई जाने लगी।